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डियर जिंदगी : ‘पहले हम पापा के साथ रहते थे, अब पापा हमारे साथ रहते हैं…’

वह सभी रिश्‍ते जिनसे हमारा ‘कुटुंब’ बनता है, माता-पिता जितने ही मूल्‍यवान हैं. बच्‍चों की शिक्षा जरूरी है, लेकिन अगर उस शिक्षा में मूल्‍य नहीं हैं, मनुष्‍य की कद्र, रिश्‍तों की ऊष्‍मा नहीं है, तो बच्‍चा ‘मशीन‘ बनेगा, मनुष्‍य नहीं! मशीन प्रेम नहीं करती, बस वह प्रेम का भरम बनाए रखने वाली चीजें बनाती है.

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